अंबरीश कुमार की ये रिपोर्ट आज के जनसत्ता में छपी है।
आजमगढ़, सितंबर। आजमगढ़ का सरायमीर इलाका एक बार फिर चर्चा में है। यहां के संजरपुर गांव के दो युवक दिल्ली बम धमाकों के सिलसिले में हुए इन्काउंटर में मारे गए तो एक नौजवान गिरफ्तार हुआ। मुठभेड़ के बाद से ही सरायमीर थाने के संजरपुर गांव में सन्नाटा छाया हुआ है। बीच-बीच में तनाव तब पैदा होता है जब मीडिया या पुलिस की कोई टीम गांव पहुंचती है। गांव के लोग चैनल से लेकर प्रिंटमीडिया की भूमिका से नाराज हैं। सैफ के पड़ोसी मुहम्मद रशीद ने कहा, ‘देखिए आज एक चैनल वाला चिल्ला कर कह रहा था कि ये आतंकवादी जमिया से पढ़े हुए हैं सोचिए पढ़े-लिखे लोग कितने शातिर हो सकते हैं। क्या अगर कोई पढ़-लिख गया तो वह शातिर हो जएगा। इस तरह की भाषा से हम लोगो और दुखी हो चुके हैं। अब हमें लगता है कि बच्चों को तालीम देने से क्या फायदा?’
इस बीच गांव के आहत लोगों ने अपने बच्चों को तालीम न देने का फैसला किया है। इसकी मुख्य वजह मदरसे में जने पर इंटेलीजेंस ब्यूरो और एलआईयू के लोग छात्रों के बारे में पूछताछ करते रहते हैं तो दूसरी तरफ उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली गए नौजवान दो महीने में ही आतंकवादी बन कर मार दिए जते हैं। दिल्ली में मुठभेड़ में मारे गए आतिफ और घायल सैफ को पढ़ाने वाले बीना पारा इंटरकालेज के प्रधानाचार्य अंसार अहमद ने कहा, ‘इस गांव के लोग दिल्ली की घटना से बुरी तरह आहत हैं। सैफ और आतिफ को मैंने तालीम दी है। जब तक ये बच्चे मेरे सान्निध्य में रहे इनके बारे में कोई शिकायत नहीं मिली। पर अब अचानक इन्हें आतंकवादी घोषित कर दिए जने से सभी हैरान हैं। मीडिया का एक बड़ा वर्ग तो सीधे फैसला दे देता है। यही वजह है कि गांव के लोग अब तय कर रहे हैं कि बच्चों को न तो मदरसा भेज जए और न उच्च तालीम के लिए बाहर।
गौरतलब है कि दिल्ली मुठभेड़ में मारे गए साजिद की उम्र १७ साल थी और इंटरमीडिएट के बाद कंप्यूटर की शिक्षा लेने दस जुलाई को दिल्ली गया था जबकि आतिफ जमिया से बीटेक की पढ़ाई कर रहा था। सैफ २३ वर्ष का है और वह बीए कर कंप्यूटर की शिक्षा लेने दिल्ली गया था। संजरपुर के लोग हैरान हैं कि किस तरह अचानक दोनों युवक आतंकवादी घटनाओं में शामिल हो गए। साजिद के पिता डा. अंसार अहमद यूनानी दवाखाना चलाते हैं। १७ साल का बेटा होने से हतप्रभ ,हैरान और विक्षिप्त नजर आते हैं। डा. अंसार ने कहा,‘१७ साल तक वह यहीं रहा, गांव से बाहर जने में भी डरता था। इंटरमीडिएट के बाद जिद करने लगा कि ऊंची तालीम के लिए दिल्ली जएगा। उसका कहना था कि ऊंची तालीम नहीं ली तो भविष्य कैसे बनेगा। ऐसे में हम कैसे मान लें कि वह अचानक आतंकवादी हो गया।
सरायमीर के सीईओ शैलें्र कुमार के मुताबिक भी इनके खिलाफ पहले कोई रिपोर्ट नहीं मिली। इससे पहले आजमगढ़ का नाम आने के बाद ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी साफ किया था कि इन नौजवानों के बारे में कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं मिली थी।
दिल्ली के जमियानगर से लेकर आजमगढ़ के सरायमीर तक जो कहानियां सुनाई ज रही हैं उससे मुसलिम समुदाय काफी आहत है। इससे पहले अबू बशर का मामला आया। संजरपुर गांव अबू बशर की ननिहाल है। अबू बशर के बाद खुफिया एजंसियों और पुलिस की निगाह में आजमगढ़ जिला आया तो दिल्ली बम धमाकों के बाद आजमगढ़ के संजरपुर गांव पर सबकी निगाह गई। दिल्ली में मुठभेड़ होते ही मीडिया के कुछ लोग संजरपुर गांव पहुंचे तो गांव वालों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। इसकी वजह अबू बशर के बारे में तरह-तरह की भ्रामक खबरों का मीडिया में आना था। पुलिस ने उसे उठाया आजमगढ़ के उसके गांव से था। जबकि गिरफ्तारी लखनऊ से दिखाई गई थी। यह जनकारी होने के बाद भी मीडिया के एक बड़े वर्ग ने वही लिखा जो पुलिस ने कहा। यही वजह है कि अब गांव वालोंे के आक्रोश के चलते मीडिया के लोग संजरपुर गांव जने से बच रहे हैं।
आजमगढ़ के मीरसराय से लेकर संजरपुर गांव तक अचानक इतने मास्टरमाइंड और आतंकवादियों का निकल आना लोगों को हैरान कर रहा है। हालांकि इससे पहले अबू सलेम भी चौदह साल की उम्र में ही रास्ता भटक कर अंडरवर्ड का डान बन गया था। जिसके बाद उसने अकूत संपत्ति इकट्ठा कर ली। लेकिन इस गांव से जो नए नौजवान निकले हैं उनका आतंकवाद की घटनाओं से सीधा रिश्ता जुड़ता नजर नहीं आ रहा है। यह कोई भी नहीं समङा पा रहा है कि शिक्षा लेने गए ये युवक अचानक कैसे आतंकवाद के रास्ते पर चल दिए। सैफ के पिता सादाब अहमद तो अभी भी मानने को तैयार नहीं है कि उनका बेटा आतंकवादी हो सकता है। आहत होकर कहते हैं कि यदि आतंकवादी निकले तो उसे गोली मार दो। पर जंच-पड़ताल करवा कर। रोचक तथ्य यह है कि सैफ के पिता सादाब अहमद आजमगढ़ जिला समाजवादी पार्टी के उपाध्यक्ष भी थे। पर जसे ही मुठभेड़ की खबर आई समाजवादी पार्टी की जिला इकाई अचानक भंग कर दी गई। हालांकि जब अबू बशर का मामला उठा था तो समाजवादी पार्टी ने पहल की थी पर इस मामले में वह फौरन पीछे हट गई। मुसलिम समुदाय मुलायम सिंह को अपना रहनुमा मानता रहा है पर इस घटना से वे भी हैरान हैं।
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2 comments:
आभार इस रिपोर्ट को यहाँ प्रस्तुत करने का.
मीडिया गैर जिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किए हुए है...उनकी टीआरपी बनी रहे भले ही कितनी ही मासूम जिंदगियां तबाह हो जाएं...आपने अच्छा विषय लिया है...आतंकवाद के मामले में निष्पक्ष रूप से कार्रवाई होनी चाहिए...सिर्फ़ किसी को इसलिए ही आतंकवादी घोषित नहीं कर दिया जाना कि वो मुस्लिम है.
firdous khan
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