Saturday, 9 August 2008

जम्मू के गुनहगार

अपूर्वानंद

जम्मू में हालात बेकाबू हो गए हैं. अमरनाथ बोर्ड को जंगल की उस ज़मीन को वापस दिए जाने की मांग को लेकर जिसका यात्रा के लिए अस्थायी उद्देश्य से राज्य सरकार ने अधिग्रहण किया लेकिन बाद में जिसकी अधिसूचना को रद्द कर दिया गया, शुरू हुआ हिन्दुओं का आन्दोलन हिंसक हो उठा है. कुछ अखबार इस आन्दोलन की ख़बर को छापते हुए यह लिख रहे हैं कि आन्दोलन धर्मयुद्ध में बदल गया है. हिंसा की खबरें छपते हुए उनकी खुशी छिपाए नहीं छिपती. पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उनके संगठनों ने यह प्रचारित किया कि हिन्दुओं की अमरनाथ यात्रा पर कोई ख़तरा आ पडा है. भारतीय जनता पार्टी से लगाव रखने वाले तत्कालीन राज्यपाल जेनरल एस.के. सिन्हा ने अमरनाथ की देखभाल के लिए बने अमरनाथ न्यास के अध्यक्ष के रूप में राज्य सरकार पर अमरनाथ यात्रियों के लिए अस्थायी प्रयोग के उद्देश्य से जंगल की इस ज़मीन का अधिग्रहण करने को कहा. कांग्रेस और पी. डी. पी. की सरकार ने पहले तो इससे सम्बंधित अधिसूचना जारी कर दी लेकिन बाद में इसी मुद्दे पर पी.डी.पी. ने इसे दबाव में लिया गया निर्णय बताते हुए ख़ुद को इससे अलग किया और फिर सरकार भी छोड़ दी. कश्मीर के अन्य सभी दलों ने इस पर ऐतराज जताया और विरोध शुरू किया तो सिन्हा के बाद नए राज्यपाल ने अधिसूचना रद्द की. राज्यपाल की इस अधिसूचना से लोगों ने राहत की साँस ली, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने इसे हिंदू विरोधी कदम बताते हुए पूरे देश में इसके विरोध में अभियान चलने की घोषणा कर दी . जम्मू जल रहा है और यह पार्टी इसे आगामी चुनाव में अपनी सीटों की बढोत्तरी के संकेत के रूप में देख रही है.

भाजपा ने यह प्रचारित करने की कोशिश की है कि राज्यपाल वोहरा का अधिग्रहण रद्द करने का निर्णय यात्रा विरोधी है. यह बताने की कोशिश भी की गई है कि कश्मीर के मुसलमान यात्रा का विरोध कर रहे हैं. उमर अब्दुल्ला ने हाल में संसद की बहस में ठीक ही कहा कि कश्मीर में जब तक एक भी मुसलमान रहेगा, यात्रा पर कोई आंच नहीं आयेगी. हमने ये खबरें पढ़ी हैं कि जब भाजपा के आन्दोलन के चलते अमरनाथ यात्री बीच में ही फँस गए तो रास्ते के गाँव के मुसलमानों ने उनकी देखभाल की. उन्हें ठहराने, खिलाने पिलाने का इंतजाम मुसलामानों ने किया. हुर्रियत और दूसरे कश्मीरी दलों ने भी बार-बार यह कहा कि उनका इरादा अमरनाथ यात्रा को बाधित करना नहीं है. जैसा उमर अब्दुला ने कहा, ऐतराज इस बात पर था कि जंगल कि ज़मीन इस मकसद के लिए क्यों ली जाए. यह सवाल भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता कि आज तक जब कश्मीरी मुसलमानों के सहयोग से हिन्दुओ कि यह पवित्र यात्रा अबाधित चलती रही थी तो फिर इस सरकारी कदम का क्या औचित्य था.
जेनरल एस. के. सिन्हा के राजनीतिक झुकाव को जानने वालों को इस पूरे घटनाक्रम पर बहुत आश्चर्य नही हुआ. जिस तरह अमरनाथ न्यास को उन्होंने अपने नियंत्रण में किया उसी से आगे की स्थितियों का आभास हो जाना चाहिए था. किसी ने यह प्रश्न नहीं किया है कि अगर अमरनाथ न्यास का अध्यक्ष पदेन राजपाल को होना है तो फिर यह क्यों ज़रूरी माना गया कि उसका हिंदू होना अनिवार्य है. क्या यह इस देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के खिलाफ नहीं? क्या हम यह कहना चाहते हैं कि एक मुसलमान या ईसाई राज्यपाल हिन्दुओं कि धार्मिक आस्था का आदर नहीं कर सकता! बात-बात में मुसलमाओं के तुष्टीकरण का शोर मचाने वाले और छद्म धर्मनिरपेक्षता की निंदा करने वाले बुद्धिजीवियों ने इस पर कोई सवाल नहीं किया.


धर्मनिपेक्षता की विशेषता धर्मों से दुराव में नहीं है. जो लोग नेंहरू की इस वजह से आलोचना करते है कि उन्होंने धर्म को लेकर राजकीय संस्थाओं में एक दोष भावना पैदा की, वे उनके और बाद के दौर को भी ध्यान से नहीं देखते. नेहरू ने धर्मों को लेकर एक इत्मीनान का माहौल बनाने की कोशिश की. भारत का प्रधानमंत्री प्रत्येक धर्म के मानने वालों के धार्मिक अधिकारों की हिफाजत के लिए जिम्मेदार है, वैसे ही अन्य सभी राजकीय संस्थाएं. फिर जब आप राज्यपाल होने के कारण किसी संस्था के प्रमुख होते है तो आपका हिंदू या मुसलमान होना गौण हो जाता है. फिर असली धर्मनिरपेक्षता वादियों ने अमरनाथ न्यास के प्रमुख होने की शर्त में अलग से हिंदू होने की अनिवार्यता पर कभी कुछ क्यों नहीं कहा?

अमरनाथ यात्रा की लिए ज़मीन लेने का जहाँ तक प्रश्न है, यह याद रखना आवश्यक है कि कश्मीर की जनता इसे लेकर बहुत संवेदनशील है कि कहीं कश्मीर का बुनियादी चरित्र न बदल जाए. यह भी याद रखिये कि भारत कि सुरक्षा के नाम पर वहां की सैकडों एकड़ ज़मीन पर सेना और अन्य अर्ध सैन्य बालों का कब्जा है. वे कश्मीरियों की पहुँच से पहले ही बाहर हैं. इसी वजह से आपने ध्यान दिया होगा कि ज़मीन लेने कि अधिसूचना के विरोध में कश्मीरी यह भी कह रहे थे कि बाकी ज़मीन भी खाली की जाय. आप को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कि वह तजवीज भी भूलनी न चाहिए जिसका इरादा कश्मीर में आबादियों को इस तरह बसाया जाना था कि वहां कि आबाई शकल बदल जाए. यह काम स्तालिन ने गैर रूसी इलाकों में रूसियों को बसा कर, चीन ने तिब्बत में चीनियों को बसा कर किया . उसी तरह कश्मीर को तीन हिस्सों में बाँटने के भाजपा के प्रताव को भी न भूलिए.

भाजपा अभी जम्मू में हिन्दुओं की गोलबंदी करने में जुटी है. उसकी कोई मोहब्बत कश्मीर से नहीं, और न वह जम्मू कश्मीर को एक इकाई के रूप में देखने में दिलचस्पी रखती है. भाजपा के नेताओं की बांछें खिली हुई है कि उन्हें हिन्दुओं को यह बताने का एक मौका और हाथ लग गया है कि वे इस देश में कितने असुरक्षित है. एक बार ठहर कर हमें यह भी देखना चाहिए कि भाजपा ने किन मुद्दों पर राष्ट्रीय आन्दोलन किया है. जनसंघ ने गोरक्षा को मुद्दा बनाया, उसके नए अवतार भाजपा ने उसकी धारा ३७० के खात्मे, समान नागरिक संहता बनाने की मांगों के साथ राम जन्म भूमि मन्दिर का मसला उठाया. कुछ समय से वह रामसेतु को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में जुटी है. अब उसे अमरनाथ यात्रा एक नया राष्ट्रीय मुद्दा दीख रहा है. जो लोग भाजपा को देश का कारोबार सौंपने और अडवानी को प्रधानमंत्री बनाने में कुछ हर्ज नहीं देखते, वे ज़रा इस पर विचार करें कि जिस राजनितिक दल को धार्मिक और नकली सांस्कृतिक मुद्दों के अलावा कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं मिलता, उसमें भी जो सिर्फ़ एक धर्म के माने वालों में, जोकि देश के बहुसंख्यक हैं, लगातार असुरक्षा की भावना बनाये रखकर ख़ुद को जीवित रखना चाहता है, उसे कितना जिम्मेवार माना जाय. जो लोगों के मारे जाने पर दुखी न हो, उसके हाथों क्या भारत की आत्मा सुरक्षित रह सकेगी?

2 comments:

मसिजीवी said...

जनसत्‍ता में ये लेख पढ़ा था मुझे अपूर्वानंद विश्‍वविद्यालय में हमारे साथी हैं का लेखन पसंद है किंतु अफसोस है कि इस लेख में दुर्भाग्‍यपूर्ण रूप से असंतुलित है तथा यथार्थ को पकड़ने की कोई चेष्‍टा नहीं करता मसलन ये वाक्‍य-

उमर अब्दुल्ला ने हाल में संसद की बहस में ठीक ही कहा कि कश्मीर में जब तक एक भी मुसलमान रहेगा, यात्रा पर कोई आंच नहीं आयेगी.

'ठीक ही कहा था' इस वैल्‍यू जजमेंट का आधार क्‍या है वे नहीं बताते। जम्‍मू का आंदोलन 'हिंदू' है लेकिन कश्‍मीर का आंदोलन का लोगों का था- ये आश्‍चर्यजनक पूर्वग्रह हैं जिनके आधार क्‍या हैं ये बताने की जिम्‍मेदारी अपूर्वानंद नहीं लेते हैं।

संक्षेप में कहें तो अपूर्वानंद इस लेख से अपना कद गिराते हैं

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप ने अंतिम चरण बहुत सही लिखा है। बधाई।